कोविड़ १९ के पूर्व भारतीय अर्थवयवस्था ८ % की सम्मानजानक आर्थिक वृद्धि दर के साथ विश्व की सबसे तेजी से विकास करने वाली आर्थिक शक्तियों जैसे अमेरिका एवं चीन में से एक था, या ये कहें कि आर्थिक वृद्धि दर के मामले में उनसे भी आगे तो अतिश्योक्ति नहीं होगा I परन्तु ऐसा तभी संभव हो सका है, जबकी भारत सरकार की वित्तीय सहयोगी रिज़र्व बैंक ने सरकार द्वारा मान्य लचीले स्फीति लक्ष्य को अपनाया है और भारत में स्फीति सीमा के अन्दर रही है, तथापि यह अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें एवं खाद्य महंगाई के कम रहने के कारण ही संभव हो सका, जो अर्थव्यवस्था में महंगाई और स्फीति के लिए ऐतहासिक रूप से जिम्मेदार रहे है I यह कथन वर्तमान के परिपेक्ष में भी उतना ही सत्य है I
लचीले स्फीति लक्ष्य के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक कि मौद्रिक नीति को स्फीति और आर्थिक वृद्धि में सामंजस्य स्थापित करना है, स्फीति को एक सीमा में नियंत्रित कर आर्थिक वृद्धि को अधिकतम करना है I भारतीय संसद द्वारा रिज़र्व बैंक को स्फीति को ४ % +/- २ % तक ही सिमित रखना है और अगर ऐसा नहीं होता है तो गवर्नर को संसद को स्पष्टीकरण देना होगा I चार्ट पर गौर करें -
भारत की खुदरा मूल्य स्फीति सितम्बर में ४.३५ % कम हुई है जो अगस्त में ५.३% थी, यह बाज़ार की अपेक्षित स्फीति ४.५% से कम रहा है, यह ५ महीनों में सबसे कम है जो आर बी आई के २ – ६% के लक्ष्य के अन्दर लगातार ३ महीने रहा है I भारत में खाद्य महंगाई ०.६८ % रही वहीँ जबकि २०१९ में वह ३.११ % थी, जो की काफी कम है I कृषि लागत भी कम हुई है जबकि तेल की कीमत बढ़ी हैं, वह १२.९५ % से बढ़ कर १३.६३ % हो गयी है I
जैसा की ऊपर कहा गया है कि भारत में तेल और खाद्य महंगाई ऊँची स्फीति और अपेक्षित स्फीति के दो प्रमुख कारण हैं, क्यूंकि इनकी सप्लाई की अनिश्चितता बनी रहती है I तेलों के दाम महंगे डॉलर में होने के कारण और ऊँचे आयात दोनों ही स्फीतिकारी हैं I भारत तेल का एक बड़ा आयातक देश है और अन्तर्राष्ट्रीय कारण का उपाय कम ही हो पाता होता है और तेल उत्पादक देशों में अस्थिरता है, सबको तेल की आवश्यकता है, तेल कि सप्लाई कम और डिमांड ज्यादा है I सभी तेल पर कब्ज़ा चाहते हैं, जो आर्थिक दृष्टि से अहम् हैं I जहाँ तक खाद्य महंगाई का सवाल है वह कुप्रबंधन और वर्षा की वजह से चढ़ जाती है I आवश्यकता से अधिक पूर्ति और उसके कम विविधिकरण के कारण कृषि अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ गयी है, सभी चावल गेहूं पैदा कर रहें हैं I यही नहीं, रोज़गार के लिए कृषि पर निर्भरता बहुत अधिक है और कृषि का सकल घरेलु उत्पाद में हिस्सा कम होता जा रहा है, कृषि में जरूरत से ज्यादा लोगों के होने के कारण कृषि अर्थव्यवस्था में प्रतिव्यक्ति आय और मांग कम हो गई हैं I भण्डारण व्यवस्था न होने के कारण किसान परेशान हैं, वो स्टॉक को नियंत्रित नहीं कर पाते और इसका फायदा बिचौलियों और खुदरा व्यापारियों को जाता I अगर किसान अपना स्टॉक सीधे खुदरा व्यापारियों को बेचेंगे तो खाद्य पदार्थों की कीमतें एवं महंगाई कम हो जाएगी और किसानों और उपभोक्ताओं को भी फायदा पहुंचेगा I
जो लक्ष्य रिज़र्व बैंक के लिए हैं वही सरकार का भी लक्ष्य है ( और होना चाहिए), सरकार की आर्थिक नीति या राजकोषीय नीति और आरबीआई की मौद्रिक नीति समन्वित तौर पर अपेक्षित मांग एवं पूर्ति एवं कीमत स्तर और रोजगार को प्रभावित करता है, जिसका सीधा असर वास्तविक निवेश और कीमतों पर पड़ता है I अपेक्षित मूल्य स्तर ज्यादा या कम निवेश मांग को सीधे-सीधे प्रभावित करता है, कम कीमतें मांग बढाती या पूर्ति घटाती हैं और ज्यदा कीमत मांग घटाती या पूर्ति बढाती हैं, यह मांग और पूर्ति के नियम हैं I सारा निवेश अपेक्षित मूल्य को ध्यान में रख कर किया जाता हैं I मांग बढ़ेगी तो अपेक्षित कीमतें बढेंगी, निवेश बढेगा - उपभोग बढेगा I
रिज़र्व बैंक एवं सरकार के बीच मतभेद आम हैं I सभी सरकारें चाहती हैं की उनके कार्यकाल में ब्याज दर कम रहे, ताकि आर्थिक वृद्धि दर ऊँची रहे, जिससे रोजगार बढे I परन्तु विभिन्न कारणों, जैसे उपरोक्त कारण, तेल एवं खाद्य महंगाई एवं अपेक्षित महंगाई या कीमत स्तर एवं संलग्नित अनिश्चितता के कारण ब्याज दर को हमेशा कम रखना संभव नहीं होता है I यही वजह थी कि हमारे निवर्तमान गवर्नर उर्जित पटेल को अपने कार्यकाल से पहले ही त्यागपत्र देना पडा I उन्होंने २०१८ में बढती तेल कीमतों के कारण दो बार ब्याज दरें बढ़ा दी थी, जो सरकार को नागवार था I यही स्थिति वर्तमान गवर्नर शक्तिकान्त दास के साथ भी आ गयी (मतभेद), जब उन्होंने कहा की तेल की बढती कीमतों के कारण अपेक्षित स्फीति बढ़ गयी है, जिसके लिए सरकार को तेल पर टैक्स कम करना चाहिए I आरम्भ में सरकार का कहना था, कि भारी टैक्स कोविड़ की वजह से बढे खर्च को निकालने के लिए लगाया गया है I तदोपरांत वर्तमान गवर्नर का कार्यकाल ३ सालों के लिए बढ़ा दिया गया है, उन्होंने स्फीति के बजाय आर्थिक वृद्धि दर पर बल दिया है और सरकार ने तेल पर एक्साइज ड्यूटी को घटा भी दिया है I
यदि आरबीआई भी चाहे तो तेल की कीमतें कुछ कम की जा सकती हैं I अगर वो बाज़ार मैं डॉलर की सप्लाई बढ़ाये या आयातित तेल को डॉलर डिस्काउंट पर दे, जिसके द्वारा भी तेल की कीमतें और महंगाई कम की जा सकती है, सस्ते डॉलर की वजह से आयातित तेल और अन्य आयात की कीमतें सस्ती हो सकती हैं Iकिसी भी अर्थव्यवस्था में कीमतों को प्रतियोगितात्मक और स्फीति को कम रखने के लिए आवश्यक है कि उत्पादन संरचना को प्रभावी बनाया जाए ताकी लागत कम हो, नवाचार हो और पैमाने की अर्थव्यवस्थाएं हो I
अर्थशास्त्रियों का मानना है की महंगाई और बेरोजगारी में काफी सम्बन्ध होता है, जब बेरोजगारी होती है तो कम ब्याज दर महंगाई और कीमतें घटाती हैं और अगर पूर्ण-रोजगार होता है तो महंगाई बढती है I भारत के नीति निर्माताओं के समक्ष रोजगार और रोजगार का आंकड़ा भी एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि उसके बिना पता लगाना मुश्किल है की अर्थव्यवस्था के पास कितनी क्षमता बाकी है, और उसका क्या उपयोग करना है, जो सीधे-सीधे महंगाई को प्रभावित करता है I भारत की अर्थव्यवस्था का लेबर क्षेत्र ज्यादातर असंगठित है I
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