कोविड़ के दौरान भारत के कृषि क्षेत्र ने अन्य क्षेत्रों, सट्टा बाज़ार छोड़ कर, से बेहतर प्रदर्शन किया है, क्योंकि वह लॉक-डाउन से बचे हुए थे, वहां बंदी नहीं हुई थी. भारत का असंगठित क्षेत्र मुख्यतः कृषि अर्थव्यवस्था से बना हुआ है, भारत की श्रम सेना का ७०% भाग मौसमी रूप से कृषि में खपा हुआ है, जिसका सही आंकड़ा सरकार के पास नहीं है, जो ब्याज दर निर्धारण के लिए आवश्यक है. भारत में मांग और विकास की कमी नहीं है, परन्तु वह महंगाई/स्फीति एवं उसकी अपेक्षा में जकड़ा हुआ है. यदि हम मुद्रा की आपूर्ति को बढ़ाए तो वह विकास और महंगाई दोनों को बढ़ाएगा, यद्यपि कम महंगाई वास्तविक विकास दर, वास्तविक आय और मांग एवं कीमत अपेक्षाओं को बढ़ाएगी, क्योंकि सभी की मांग एक साथ बढ़ेगी.
रिज़र्व बैंक का कार्य है कि वो अर्थव्यवस्था में निवेश को बढाने के लिए स्फीति एवं ब्याज दर अपेक्षाओं को स्थिर रखे. व्यापार उत्पादन बढाने एवं स्टॉक में निवेश बढाने के लिए अपेक्षित कीमतों को भी ध्यान में रखते हैं, ऊँची कीमत अपेक्षाएं निवेश मांग को बढ़ातीं हैं, जो कीमतों को और भी बढ़ाती हैं, यद्यपि उपभोग मांग भी कीमतों को बढ़ा सकती हैं, इसका विपरीत भी उतना ही सत्य है. काफी अधिक या कम कीमतें, वृद्धि/ह्रास की अनुभूति या अपेक्षाओं में बदलाव के लिए उत्तरदायी होते हैं, जोकि आधार या निराधार प्रभाव पर निर्भर करता है.
हांलाकि सट्टा बाज़ार का मूल्यांकन दिखाता है कि निवेशक भारत की विकास कि कथा में विश्वास करते हैं, क्योंकि वह विश्व कि सबसे अधिक गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, सभी उसके लिए उत्साहित हैं.
अल्पकाल में देश-विदेश में घटने वाली घटनाएं और प्रोत्साहन की सूचनाएँ सट्टा बाज़ार सूचकांक को कंपनियों की आमदनी और बुक अनुपात से ज़्यादा प्रभावित करती हैं, अपितु वह भी महत्वपूर्ण होते हैं. हालांकि अभी ओमिक्रोन को छोड़कर कोई बड़ी मुसीबत अप्रत्याशित हैं, जिसके कारण बड़ी गिरावट कि आशंका कम ही है, मगर ५-१०% का सुधार कभी भी हो सकता है, परन्तु ५-१०% का चढ़ाव भी नकारा नहीं जा सकता है.
ऐसी संभावना हो सकती है कि सट्टा बाज़ार किसी बड़ी गिरावट के पहले अपनी स्वाभाविक स्तिथि में आये. विश्लेषक आम तौर पर चरम स्तिथि कि बात करते हैं, जबकि यह समय स्तिथि के सामान्य होने का है और कोई भी बड़ा सुधर निवेश को बढाने का सही समय होगा. हम बाज़ार कि सीधी चढ़ाई की स्तिथि के मध्य में हैं, जैसा की २००९ से २०१७ के बीच में अनुभव किया गया था, जबकि अर्थव्यवस्था में आधार-प्रभाव के कारण सुधार की काफी गुंजाइश हैं और वह अपनी पकड़ भी बना रही है और इससे ऊँची अपेक्षाएं है. आर्थिक सुधार धीरे-धीरे अपनी रफ़्तार बढ़ा रहा है.
अनलॉक और अर्थव्यस्था के खुलने के पश्चात कम्पनीयों कि आमदनी बढ़ने की अपेक्षाएं ज्यादा हैं, परन्तु जहाँ मूल्य बहुत ज्यादा बढे हुए हैं वहां लोग अपेक्षा करते हैं कि दाम घटेगा.
यदि बाज़ार अपने लोकप्रिय अपेक्षाओं के हिसाब से बढता-घटता है, तो यह निवेशकों के लिए अच्छा होता है, परन्तु अनिश्चितता और नकारात्मक चौकाने वाली घटनाएँ निवेश के लिए बुरी होती हैं. सट्टा बाज़ार एक अग्रोंमुख तंत्र होता है जोकि अच्छी या बुरी सूचना को कीमत अपेक्षाओं के ज़रिए कीमत में पहले ही सम्मिल्लित कर लेता है. कम कीमत की अपेक्षाएं मांग में विलम्ब कर पूर्ती को बढाती हैं जिससे कीमत और घट जाती है एवं ज्यादा कीमत की अपेक्षाएं पूर्ती में विलम्ब कर मांग को बढाती हैं जो कीमतों को और भी बढाता है.
कोविड़ काल के कम कीमत आधार की वजह से दुनिया की आर्थिक शक्तियों की इस साल कि आर्थिक वृद्धि दर एवं महंगाई एवं अपेक्षाएं काफी ऊँची रहीं और इसी वजह से निराधार प्रभाव के कारण अगले साल की महंगाई और विकास दर नीचे रहने का अनुमान या अपेक्षा है.
भारत एवं अमेरिका में ऊँची महंगाई और विकास दर का एक कारण एक सांख्यिकीय भ्रम भी है, जिसे आधार प्रभाव कहा जाता है, जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है. यह ऐसा यूँ होता है, क्योंकि आधार वर्ष में बहुत कम महंगाई एवं विकास दर के कारण अर्थव्यवस्था के सामान्यीकरण के कारण काफी उछाल आ जाता है, परन्तु जब महंगाई और विकास दर का आधार सामान्य हो जाते है, तो आगे के वर्षों महंगाई और विकास दर भी सामान्य हो जाती है. आधार समय सामान्यतया पिछली तिमाही या पिछला वर्ष होता है, यदि हम आधार समय बदल दें तो, यह सीधे सीधे वर्तमान आंकड़ों को प्रभावित करेगा. कम महंगाई और विकास दर वाला आधार वर्ष वर्तमान में महंगाई और विकास दर ऊँचा या अधिक दिखाएगा और ज्यादा महंगाई और विकास दर वाला आधार वर्ष वर्तमान की महंगाई और विकास दर को कम दिखाएगा.
जहाँ तक आंकड़ों और सांख्यकी का सवाल है, तो हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि पिछली तिमाही या पिछले साल क्या हुआ था, जो की इस वर्ष के लिए आधार होगा. अनुक्रमाणिका चाहे वह महंगाई के लिए हो या विकास के लिए, वह हमेशा पिछली तिमाही या पिछले वर्ष को आधार मान कर बनाया जाता है. पिछली तिमाही या पिछले वर्ष क्या हुआ हमारे वर्तमान महंगाई और विकास दर को सीधे-सीधे प्रभावित करता है, यदि हम आधार तिमाही/वर्ष बदल दें तो हमारा वर्तमान आंकड़ा भी बदल जाता है, भूतकाल में क्या हुआ वह वतर्मान का निर्धारण करता है.
भारत में वर्तमान महंगाई दर ४.९१% है जिसका आधार वर्ष २०२० है, यदि हम २०१२ को आधार वर्ष मान कर २०२१ की महंगाई दर निकाले तो वह ७०% है, और यदि हम उसे १० (वर्ष) से भाग दें तो प्रति-वर्ष महंगाई ७% होगी. जहाँ तक महंगाई का प्रश्न है तो हम एक ही नदी में कभी नहीं उतरते, वह हर वर्ष बढ़ती ही रहती है. सही आकडे प्रतिशत और अनुपात के पर्दे के पीछे रहते है, जो आम आदमी को ज्यादा समझ नहीं आते है. सरकार को चाहिए की वह सापेक्षिक आंकड़ों की बजाये निरपेक्ष आंकड़ों को सार्वजनिक करे, जो की जनता समझ आये और यह निवेश बढ़ने और बजट बनाने में मददगार होगा.
सभी देशों की विनिमय दर समय के साथ मजबूत हुई है, परन्तु भारत की विनिमय दर समय के साथ कमजोर हुई है, जो कि नीति के तौर पर भारत के नीतिनिर्माताओं की एक बड़ी भूल है, जो देसी मांग को कम कर निर्यात को बढ़ावा देती है, जो सुधार योग्य है, भारत को भी अन्य देशों से सबक लेना चाहिए. भारत को चाहिए की वह धीरे-धीरे अपने विनिमय दर को मजबूत करे जिससे आयातित महंगाई कम होगी और कम महंगाई के कारण निर्यात भी बढ़ सकते हैं.
यदि लोगों की आय महंगाई से ज्यादा बढ़ती है, तो थोड़ी महंगाई अच्छी होती है. मौद्रिक नीति के सामान्यीकरण का मतलब होगा की अर्थव्यवस्था अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह पर है. भारत में सामान्यीकरण के कारण ऊँची ब्याज दर अपेक्षाओं की वजह से महंगाई की अपेक्षा कम ही है.
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